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शुक्रवार, 8 अप्रैल 2011

vishwacup aur hum

आखिर भारत ने विश्व कप  जीत ही लिया . बहुत ही भावुक कर देने वाला पल था. हमारे मोहल्ले के बच्चो ने बैंड बाजे की धुन पर सुबह तक नृत्य किया. पटाखे छोड़े . खूब हंगामा किया . भोजन करने के बाद मै बिस्तर पर लेट गया . कमरे में अँधेरा कर मै सोने की कोशिश करने लगा तो स्मृति में २८ साल पहले का दृश आँखों में घुमने लगा. इंग्लॅण्ड के लोर्ड्स के मैदान में भारत बनाम वेस्ट इंडीज़ का फ़ाइनल   चल रहा था . हम मुश्किल से पाच  लोग मेरे पड़ोस  के झोपड़े में बैठे रेडियो में भारत - वेस्ट इंडीज के फ़ाइनल की  कमेंटरी  सुन  रहे थे. बाहर  हलकी बारिश हो रही थी. झोपडी दरअसल  बकरियों के रहने के लिए  थी. कमेंट्री के शोर से हमारे घरवालो की नींद में खलल पड़ती इसी लिए हम पांच दीवानों ने फ़ाइनल  मैच की  कमेंट्री सुनने के लिए इस जगह का चुनाव किया था, झोपड़ी में   एक छोटी सी खाट थी जिसकी रस्सिय पूरी तरह से ढीली हो गई थी. दो लोग , जिसमे एक मै था चारपाई के बीच झूल रहे थे और बाकी तीन  लोग चारपाई के पत्ते  पर लटके हुवे थे. कमेंटरी चुकी अंग्रेजी में आ रही थी और उन पाचो में अंग्रेजी थोड़ी बहुत अंग्रेजी  मुझे ही समझ में आती थी  तो जब भी कोमेंतेतर  चीखता तो बाकी चारो कोतुहल से मेरी तरफ देखते की जल्दी बताओ किया घटा    और कुछ कुछ कमेन्टेटर के आवाज़ के हाव भाव से खेल को समझने की कोशिश कर रहे थे. 

जैसे ही मोहिंदर अमरनाथ ने होल्डिंग को आउट किया हम पांचो चीखते शोर मचाते झोपड़े से बहार निकले . बारिश अभी भी जारी थी . हम सड़क पर आकर शोर मचने लगे . हम भाव बिह्वल थे. हमारे हाले रुधे हुवे थे.हम ठीक से बोल भी नहीं पा रहे थे. बारिश अब काफी हलकी हो गई थी . सडक जो हमारे घरो के पास ही था , पूरी तरह से सन्नाटा था . हम सड़क पर झूमते नाचते चील्लाते जा रहे थे . चौक में भी पूरी तरह से सन्नाटा था. मेरे मोहल्ले के सारे लोग सो रहे थे,   लगभग रात के एक बज चुके थे . मेरे एक मित्र बिनोद सिंह ने कहा चलो बैंड  बजे वाले को बुलाते है,.उस समय हम सब छात्र थे . पांचो के पाकेट से कुल मिला कर दस रुपये भी नहीं निकलते . ग्लोबल्य्ज़ेसन तब शुरू नहीं हुवा था. नाही रुपैये का इतना अबमुल्याँ   ही हुआ था. बिनोद ने पास के मोहल्ले से एक बैंड बजने वाले लड़के को सोते से जगाया . वह उसका पहले से ही परिचित था . बिनोद उसे समझाने की कोशिश कर रहा था की आज भारत ने कितनी बड़ी सफलता हासिल की है . नींद में खलल पड़ने से वह कुछ झुझलाया हुआ था और किसी भी तरह से समझने को तैयार नहीं था की आज वैसा कुछ विशेष हुवा है न ही वह मुफ्त में बैंड बजने को तैयार था . बिनोद उसे जितना समझाने की कोशिश करता उतना ही  वह ज्यादा झुझुलाता . अंत में हमने उसकी बुद्धि पर तरस खा कर उसे जाने जाने दिया और आगे बढे . थोड़ी देर में आगे मोड़ पर अँधेरे में एक साये को लहराते हुवे देखा जो बंगला में चीख रहा था "इंडिया जीते गये छे " पास जा कर देखा तो वोह हमारा मित्र सल्लू निकला जो खली बदन सिर्फ लुंगी पहने भारत के जीत का अकेले ही आनंद मन रहा था. थोड़ी देर छिखने चील्लाने के बाद हम सभी अपने  अपने घर लौट आये . उत्तेजना के मारे हम रात भर ठीक से सो भी नहीं पाए. 

आज जब हम उस अट्ठाईस साल पहले की रात को याद करते है तो बड़ा अजीब सा लगता है की मेरी पत्नी जिसे क्रिकेट बिलकुल समझ में नहीं आती उसने भी हमारे साथ आज पूरी मैच का आनंद लिया . चुकी वोह झारखण्ड की है तो वोह सिर्फ धोनी को ही ठीक से पहचान पा रही थी और मुझे लग रहा था समय काफी आगे निकल चूका है,

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