क्रिकेट मे फिक्सिंग कि खबरो से अखबार, समाचार पत्रिकये , न्यूज चैनल भरे पडे है . हर दिन कोई ना कोई नया खुलासा हो रहा है. क्रिकेट एवम कोर्पोरेट जगत की बडी बडी हस्तियो के नाम भी आने
लगे है. मुम्बैया फिल्मी दुनिया
के लोगो के नाम 20- 20 क्रिकेट मे
पहले से ही जुडे थे मालिक के तौर पर
अब तो फिक्सर के तौर पर भी जुड गये है बिंदू दारा सिह कि
गिरफ्तारी के बाद .
शायद
बहुत लोगो को पता नही होगा
कि क्रिकेट मे फिक्सिंग का इतिहास अंग्रेजो के समय से है जब भारत मे
क्रिकेट राजा महाराजओ का खेल हुआ करता था . भारत मे महाराजाओ कि सरपरस्ति मे इस खेल का
विकास हुआ . पटियाला के महराजा को क्रिकेट खेलने का बहूत
शौक था . वे इंग्लैंड से अंग्रेज खिलडियो को बुला कर अपने महल मे
ठहराते थे. महराजा कि अपनी टीम हुआ करती थी . उसमे अंग्रेज और हिंदुस्तानी दोनो खिलडी शामिल होते
थे . उन्होने अपना एक स्टेडियम बना रखा था. मैच के दिन छोटे बडे राजाओ , नबाबो , अंग्रेज एवंम हिंदुस्तानी
सरकारी अधिकारियो को भी मैच देखने का न्योता
दिया जाता था. सभी के स्वागत सत्कार
का उत्तम प्रबंध रहता था . लजीज खाने के साथ साथ बढिया
विदेशी शराब भी परोसे जाते थे.
राजा सिर्फ बल्लेबाजी करने जाते थे. फिल्डिंग का काम
उनके नौकरो द्वारा किया जाता था .
बरह्बे खिलाडी कि परीकल्पना शायद इसी कि
देन है. एक बार बल्ले बाजी के
दौरान पटियाला के महाराजा के कान
के बुंदे कही खो गये . खेल रुक गया . सभी
खिलाडी घुटनो के बल जमीन पर बैठ कर
महाराज के बुंदे ढूंढ रहे थे . फारवर्ड शोर्ट लेग के खिलाडी को महाराज शक की नज़रो से
बार बार घूर रहे थे . बेचारा अंग्रेज खिलाडी सकपकाया हूआ
था . घंटो खोजबीन के बाद वे बुंदे
मिले. बुंदे महाराजा की दाढी
मे अटके
हुये थे. राजा साहब को आउट करने या
आउट देने कि हिम्मत ना तो खिलडियो मे थी ना ही अम्पायर मे. अगर महाराजा बोल्ड हो जाते तो उस बाल को नो बाल घोषित किया जाता था.
फिल्डर महाराजा का कैच जानबूझ कर टपका
देते थे.
एक बार का किस्सा
यो है कि एक युवा अंग्रेज खिलाडी बार
बार एल. बी. डब्लू. की अपील
कर रहा था और अम्पयार जान बूझ कर उसे नकार रहा था . यह देख विपक्षी
टीम का कप्तान उस युवा खिलाडी के पास जा
कर उसके कान मे कहा ज्यादा शोर मत करो . हमे
इसी के महल मे रहना है कही ऐसा ना
हो की ये रात के खाने मे तुम्हे ज़हर दे दे .
एक बार
मद्रास प्रांत के एक महाराजा भरतीय टीम के कप्तान बन कर वहा के किसी काउन्टी के विरुद्ध क्रिकेट खेलने गये . विपक्षी टीम के एक बालर को
सेट किया . कई सौ पौंड दिये और कहा कि जब मै बल्लेबाजी करने आउ तो आसान गेंद फेकना जिससे मै आसानी से रन
बना सकू क्योंकी भारतीय टीम को टेस्ट टीम का दर्ज़ा मिलने वाला था और वे भारतीय टीम
का पहला कप्तान होने का गौरव हासिल करना
चाहते थे. मैच शुरु हुआ . फिर महाराजा की
बल्लेबाजी करने की बारी आयी . गेंद उसी
गेंद्बाज के हाथ मे थी जिसे राजा साहब ने पैसे दे कर सेट किया था .
उसने एक धीमा फुल टास गेंद फेका . राजा साहब इस गेंद को मरने मे चूक गये और उनकी विकेट की गिल्लिया बिखर गयी
. राजा साहब आउट हो कर चले गये . मैच के खत्म होने पर राजा साहब ने उस गेंद्बाज को
बुलवाया . इससे पहले कि राजा साहब कुछ कहते. वह गेंद्बाज ने गुस्से मे चिल्लाते
हुए कहा “ मेरी उस
गेंद पर तो मेरी पत्नी भी छक्का मार देती
. राजा जी का मुह बन गया .
राजा साहब
ने हार नही मानी . वे भारतीय टीम का पहला
कप्तान बनना क चाहते थे. इसके लिये वे कोइ
भी कीमत चूकाने को तैयार थे . फिर लोगो के काफी समझाने बुझाने के बाद उन्होने अपनी
ये हट छोडी और कर्नल सी. के. नायडू को भारतीय टेस्ट टीम का पहला कप्तान चुने गये .
जो लोग सट्टे
को वैधता प्रदान करने की वकालत करते है
उनकी जानकारी के लिये
एक प्रसंग है. बात 1980 – 81 के भारत के
आस्ट्रेलिया दौरे की है. सुनील गावस्कार
भरतीय टीम के कप्तान थे . भारातीय टीम पुनर्गठन के दौर से गुजर रही थी.विश्वप्रसिद्ध
स्पिन चौकडी भरतीय से बाहर हो चुके थे.
गावस्कर ने स्पिन की जगह तेज गेंद्बाजी को अपना मुख्य हथियार बनाने का प्रयास कर
रहे थे. कपिल देव का पदर्पण टेस्ट क्रिकेट मे हो चुका था . वे अपनी उपयोगिता भी सिद्ध कर चुके थे. कभी करसन घावरी तो कभी
मदन लाल उनके साथी गेंद्बाजो की भूमिका
निभा रहे थे . यहा तक तो ठीक था पर कभी कभी तो उन्हे दूसरे छोर से गेंद्बाज के रूप मे मोहिंदर अमरनाथ
या फिर संदीप पटिल के साथ नया गेंद शेयर करना पडता था . संदीप पटिल इस सिरीज की उपलब्धी थे. दूसरी
तरफ महान ग्रेग चेपल कि अगुवाई वाली ऑस्ट्रेलियाई
टीम बडे बडे सितारो से सजी थी.
डेनिस लिल्ली , हॉग, ड्ग वॉल्टर , लेन पस्को रोडनी मार्स आदी
जिन्होने पैकर सर्कस के टूटने के बाद औस्ट्रेलिआई टीम मे योग्दान देने को तैयार
थे.
पहला टेस्ट भारत बुरी तरह से हार गया . महान बल्लेबाज ग्रेग चेपल ने इस टेस्ट मे
दोहरा शतक लगाया . सुनील गावस्कर,
संदीप पटील ,
दिलिप बेंगसरकर, मोहिंदर
अमरनाथ , चेतन चौहान
एवम विश्वानाथ के समुहिक प्रयास से बाद के दो टेस्ट मैच तो किसी तरह से बचा लिया
गया . लेकिन अंतिम टेस्ट मैच भारत ने अश्चर्यजनक ढंग से जीत लिय. अंतिम पारी मे
ऑस्ट्रेलिया को सौ से भी कम रनो मे आउट करके. मह्हन चैपल शुन्य मे आउट हो गये .
घावारी ने लगातार दो गेंदो पर डय्सन और चैपल को आउट कर दिया . रही सही कसर कपिल
देव पूरी कर दी .
कहा जाता है
के लिल्ली सहित कई ऑस्ट्रेलियाई खिलडीयो
ने ऑस्ट्रेलिया के हार पर सट्टा लगाया था.
1978-79 मे
भारत दौरे पर आयी पकिस्तानी टीम आसिफ इक्बाल के नेत्रीत्व मे भारत आयी और सिरीज हार कर गयी तो कप्तान आसिफ एक्बाल टेस्ट
मैचो से सन्यास की घोषणा भारत की जमीन से
ही करनी पडी . पकिस्तान के कई सीनियार क्रिकेटरो ने उन पर पैसे ले कर भारत से
हारने का इल्ज़ाम लगाया था.
मैच फिक्शिंग
का तब से जारी है आउर अब तो इसने
टेक्नलॉजी की सहायाता से विकराल रूप ले लिया . सट्टे बाजी को चाहे आप जितना भी वैध
घोषित करे मैच फिक्शिंग समाप्त होने वाला नही है .
प्रेम
कुमार
Prem ki dunia ब्लॉग से